पार्ट 4 प्रकरण 11 साखी 15

हंसा तूँ तो सबल था, हलुकी अपनी चाल । रंग कुरंगे रंगिया, तै किया और लगवार || 15 ||

शब्दार्थ:- सबल = ज्ञानबल से परिपूर्ण । हलुकी= गम्भीर, मधुर धीमी । रंग = सत्य । कुरंगे = असत्य | और = दूसरे को । लगवार = उपपति, अपने ऊपर दूसरा मालिक मानना ।

भावार्थ:-  हे हंस जीव ! तूँ बड़ी गम्भीर चाल चलने वाला सत्य ज्ञान बल से परिपूर्ण था। फिर भी विषयादि काल्पनिक वाणीजाल में पड़‌कर किसी और को अपना स्वामी मान बैठा है।

ब्याख्या:- सबल जीव निर्बल क्यों बना ! सद‌गुरु इसके दो कारण बताते हैं- एक तो विषयवासनाओं की आसक्ति, दूसरा अपने ऊपर कोई काल्पनिक स्वामी की मान्यता । अब तो वह इन दोनों का मुहताज ही हो गया है।

जीव-मानव अपनी स्वतः सबल शक्ति तथा मन के द्वारा अनेक ईश्वर देवी, देवतादिक, पूजा, कर्मकांड उपासना. योग वेदादि बंधन स्वीकार किये है। और अब वह भक्ति-भावना के स्तर पर इतना आसक्त हो गया है कि प्रार्थना, पूजा के नाम पर रोना गिड़गिड़ाना उसकी नियति ही वन गई है। वह अपना वास्तविक स्वरूप भूल बैठा है।

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