पार्ट 4 प्रकरण 11 साखी 18

काहे हरनी दूबरी, यही हरियरे ताल । लक्ष अहेरी एक मृग, केतिक टारै भाल || 18 ||

शब्दार्थ:- हरनी = हिरनी, जीव | लक्ष= लाख,निशाना, उद्देश्य । दूबरी - कमजोर, दुर्वल । अहेरी = शिकारी । केतिक = कितने | टारै= बचाये | भाल = तीर, भाला । हरियरे ताल = मानव तन ।

 भावार्थ:-  ऐसे बिबेक सम्पन्न मानव शरीर को पाकर भी जीव दुखी क्यों है? क्योंकि उसके पीछे शिकारी (निरंजन) के द्वारा अनेकों तीर छोड़े गये हैं तो वह अपने-आप को कैसे बचाये ?

व्याख्या:- यह जगत । दृश्य-अदृश्य, चमत्कृत, विचित तालाब निरंजन महाराज का है। जिसमें विषय व धर्म, योग, वेद, भक्ति, पूजा, कर्मकांड, तीर्थ, जप-तप, देवी-देवतादिक काल्पनिक हरी भरी घास खूब लहलहा रही है। जिसे हिरनी रूप जीव खूब जी भरकर खा भी रहा है। सद्‌गुरु पूछते है कि फिर भी तूं कमजोर व दुखी क्यों है? तो हिरनी रूप जीव उत्तर देता है कि मुझे डर है मैं मारी न जाऊँ ! यह शिकारी मुझे ही लक्ष्य बनाकर निशाना साधे हुये तीर पर तीर चला रहा है अब में कितने तीरों से अपने आप को बचाऊँ? लगता है मेरा मरना तो निश्चित है, भला ऐसे समय में मुझे सुख कैसे हो सकता है?

यहाँ हिरनी (पशु) व जीव (मानव) का रूपक है। सद्‌गुरु जीव मानव को हिरन पशु के रूप में दर्शाते है । कहते है की हिरन पशु है दुखी हो सकता है किन्तु तूँ तो मावन होकर दुखी होता है तुझे ज्ञात नहीं की तूँ सर्व योनि श्रेष्ट है ।

वस्तुतः चार क्रियायें सभी योनियों के जीवों में होतों है- 1. भय 2. मैथुन 3.निद्रा 4.आहार । भय-पशु-पक्षी आदि को लगता है, तो मानव को भी लगता है। मैथुन व प्रजनन-पशु-पक्षी आदि भी करते हैं, तो मानव भी करते हैं। निद्रा-पशु-पक्षी, कीट, वृक्ष लेते हैं तो मानव भी लेता है इसी प्रकार भोजन भी सभी योनियों में अनिवार्य है। तो क्या हम पशु, पक्षी, कीटादि हैं, यदि नही.. तो हम मे ऐसी क्या विशेषता कि सर्वश्रेष्ठ योनि मानव कहलाने के अधिकारी है।

वह है बिबेक ! यदि हम विवेक करना नहीं जानते तो निश्चय ही हम पशु-पक्षी, कीटादि हैं। और बिबेकी है तो मानव है। अतयेव मानव होने पर बिबेक के लिये प्रयत्न शील है , तो बिना सतसंग व संत समागम के सम्भव नहीं है।


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