पार्ट 4 प्रकरण 11 साखी 11

 जो जानहु जग जीवना, जो जानहु सो जीव । पानी पचावहु आपना, तो पानी माँगि न पीव || 11 ||

शब्दार्थ:- जग = संसार । पानी = वाणी, सत्यवाणी अथवा भ्रमित पूर्णवाणी । पचावह = हजम करो, प्रयोगिक जानो ।

भावार्थ:- यदि संसार का जीव-जीवन जानना चाहो तो. जो तुम्हारा जीव है वही सर्वत्र संसार  का । यह भ्रामक वाणी प्रयोग करके पचा डालो, तो फिर कल्पित वाणी किसी से मांगने की आवश्यकता नहीं है।

व्याख्या:- यह भ्रम सर्वत्र है कि मैं कौन हूँ' यदि जानना है तो प्रयोग करना पड़ेगा, और निष्कर्ष के रूप में सम्पूर्ण सृष्टि में जीव रूप की जानकारी हो जायेगी तो फिर किसी से कोई काल्पनिक वाणी ग्रहण करने की आवश्यकता ही नहीं है। दूध का दूध-पानी का पानी हो जायेगा ।

लोगों में सदा भ्रम रहता है कि मैं तो कुछ भी नहीं हूँ और वह निरंजन के चमत्कृत संसार की भौतिकता में बड़े बनने की लालसा के कारण बड़े-बड़े भ्रम पूर्ण वाणी के गट्‌ठर अपने ऊपर लादता ही रहता है। कभी वह बड़े चमत्कृत दिखने वाले ठग गुरुओं के चक्कर में पड़कर कई-कई जीवन बर्बाद करते भोगते हुये आगे अन्यान नारकीय योनियों में जाने के लिये वाध्य हो आता है। यदि वह सारशब्द के द्वारा प्रयोग कर जान ले तो उसके सम्पूर्ण संसय एक बार में ही समाप्त हो जायेंगे तो फिर उसे किसी के आगे हाथ फैलाने की आवश्यकता नहीं रहेगी। यह सत्य है।

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