पार्ट 4 प्रकरण 11 साखी 12

पानी पियावत क्या फिरो, घर घर सायर वारि। तृषावंत जो होयगा, पीयेगा झख मारि || 12 ||

शब्दार्थ:- तृषावंत = सत्य उपदेश का प्यासा । सायर = सागर, समुद्र । झक = अहंकार।

भावार्थ:- उपदेश क्या देते फिरते हो ! सबके अंतःकरण में कल्पितवाणियों का सागर हिलोरें ले रहा है। जो सत्य उपदेश का प्यासा होगा वह अहंकार को त्याग कर अतिशीघ्र ग्रहण करेगा ।

ब्याख्या:- कुछ लोग तो ऐसे उपदेशक होते हैं कि उनका मुख बराबर बक-बक, बड़-बड़ करता ही रहता है वे इस ताक में रहते हैं कि कोई मिले तो में उसे अपने बक्तव्य सुनाऊँ। यदि उन्हें कोई मिल जाता है तो वे शुरु हो जाते हैं यह भी नहीं सोचते कि अगला ब्यक्ति मेरे भाषण सुन भी रहा है कि नहीं उन्हें बस कहने से तात्पर्य होता है। वे सुपात्र का भी चयन नहीं करते, जब कि साहब ने कहा है-

हीरा तहाँ न खोलिये जहाँ कुजरों की हाट। सहजहिं गांठी बांधिये, लगिये अपनी वाट ॥ (साखी-140)

अधिक बोलने वाले व्यक्ति की ऊर्जा तो समाप्त होती ही है, और लोग उसे बाचाल भी कहते हैं तथा उसके वक्तब्य का समाज पर असर भी नहीं होता।

जिभ्या को तो बंद दे बहु बोलन निरुबार । पारखी के संग करु गुरु मुख शब्द विचार ।। (साखी 82) 

यदि फिर भी कोई बिना विचार के बोलता ही रहता है  तो ऐसे व्यक्ति के लिये सद्‌गुरु कहते हैं। -

जाके जिभ्या बंध नहिं हृदया नाहीं सांच ।

ताके संग न लागिये घालै वटिया मांझ ।। (साखी -83)

कितने उपदेशी नामधारी, विवेक बैराग्य तथा सदाचार की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले होते हैं, किन्तु वे साधारण आचरणों का भी पालन नहीं करते। कबीर साहब का संकेत शायद ऐसे ही व्यक्तियों की ओर है।

सत्पात्रों को ही उपदेश करना चाहिये, कुपात्रों को नहीं क्योंकि वो पहले ही गर्व घमंड युक्त भ्रामक वाणियों का पुलंदा बाँधे हुये हैं। ऐसे संसारी व्यक्तियों के मन में अनेक कामनायें और कल्पनाएं भरी होती हैं। जब तक उनका भी लक्ष्य आपकी ओर नहीं होगा, तब तक आपके सत्संग उपदेशों का उन पर कोई असर नहीं होगा।

जो सत्य का प्यासा होगा वो बड़े विनम्र भाव से श्रद्धा व प्रेम के साथ सभी अहंकार त्यागकर सत्य उपदेश ग्रहण करेगा ।

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