पार्ट 4 प्रकरण 11 साखी 16

हंसा सरवर तजि चले, देह परी गौ सुन्न । कहहिं कबीर पुकारिके, तेही दर तेहि थुन्न ||16|| 

शब्दार्थ:- सरवर = तालाब, मानव देह । दर = वासना, कर्मफल। थुन्न = थून, अन्य देह धारण, स्तम्भ, खम्भा, चाँड़ चाह, प्रेम।

भावार्थ:- जब जीव देह त्यागकर चला जाता है तो शरीर की चेतना सून्य हो जाती है। तो कबीर साहब पुकार कर कहते हैं कि अब तुम अपनी वासना व कर्मफल के अनुसार दूसरा शरीर धारण करोगे ।

व्याख्या:- जब तक जीव वासना नहीं छोड़ता तब तक उसको मुक्ति नहीं है, क्योंकि वासना रहित होना ही मुक्ति पाना है। संसार रूपी वृक्ष का बीज वासना है दशों दिशा उसके पत्ते हैं शुभ-अशुभ कर्म उसके फूल हैं तथा मानव, पशु, पक्षी, वृक्ष, पत्तर आदि इस संसार रूपी वृक्ष के फल हैं।

जीव मानव यदि सद्‌गुरु के सत्संग द्वारा अपने शुद्ध स्वरूप को समझकर साधन अभ्यास के द्वारा अपने-आप को जान ले तो वह वासनारूपी बन्धन अवश्य त्याग देगा, अन्यथा विषय वासना मिट ही नहीं सकती यह सत्य है।

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट