पार्ट 4 प्रकरण 11 साखी 5

शब्द शब्द बहु अंतरे, सार शब्द मत लीजै । कहहिं कबीर जहाँ सारशब्द नहिं , धृग जीवन सो जीजै ॥ 5॥

शब्दार्थ:- शब्द-शब्द= भ्रामक गुरुओं के द्वारा गुरु दीक्षा में प्रयुक्त नाद, मंत्र आदि कल्पित वाणी। सारशब्द = सद्‌गुरु द्वारा प्राप्त अखण्ड अकार ध्वनि संकेत । अंतरे= भेद । मत = सलाह, कहते हैं-मत, पंथ, धर्म सम्प्रदाय ।धृग = धिक्कारने योग्य | जीजै = जीना 

भावार्थ:- शब्द-शब्द में बड़ा भेद है, लेकिन सत्य उपदेश के लिये सार शब्द ही सर्वोच्च मत है इसे ही लीजिये | जिसके पास सार शब्दज्ञान नहीं है, वह मानव जीवन धिक्कारने योग्य है।

व्याख्या:- इस साखी में 'मत' की जगह 'मथ' लिखकर या कहकर लोगों ने सारशब्द उपदेश का तो बिखंडन ही कर डाला है। उन्हें पता नहीं है कि सार शब्द मथा नहीं जाता बल्कि सुरति माध्यम से पकड़ा जाता है, जाना जाता है, क्योंकि बचने का यही एक रास्ता है। 

सार शब्द से बाँचिहो मानहु इतवारा । (शब्द 114) 

सार शब्द से सुरति केंद्रित करना है न कि उसे मथना । वह तो उन अनेक भ्रामक शब्दों से स्वयं अलग है उसे अलग करने की क्या आवश्यकता है। जितने भी वर्णात्मक, ध्वन्यात्मक शब्द या नाद शब्द प्रचलित हैं वे सब सार शब्द से ही है, सार शब्द उनसे नहीं है। चौतीस वर्णों में लिखे विश्व के सभी ग्रंथ या योगादि नाद सभी सार शब्द के द्वारा प्रचलित, स्वचालित या ध्वनित है ।

सांचा शब्द कबीर का, हृदया देखु बिचार। चित्त दै समुझै नहीं, मोहि कहत भैल जुग चार ।।(साखी 74)

कबीर साहब का शब्द बिल्कुल शुद्ध और सत्य शब्द है इसे हृदय (अंतःकरण) से बिचार कर चित्त के द्वारा समझा जाता है कि उन भ्रामक बंचक गुरुओं के दिये दीक्षा शब्द ठीक हैं या सारशब्द उपदेश ठीक है तब सुरति माध्यम से इसे पकड़ा जाता है। मथा नहीं जाता। 

नष्ट का यह राज है, नफर का बरते तेज | सारशब्द टकसार है, कोइ हृद‌या माँहि बिबेक ||  (साखी 292) 

टकसार में किसी भी तरह का हस्थक्षेप नहीं हो सकता। जैसे ‘सूत्र’ सवाल को हल करने के लिये प्रयोग किया जाता है, यदि कोई सूत्र को ही हल करने लगे तो उसे क्या कहा जाये ?...... सूत्र (फार्मूला) अकाट्य होता है जो प्रश्न पर लगते ही सही उत्तर दे देता है। दही मथकर घी निकाला जाता है, यदि कोई घी रूप सार को ही मथने लगे तो उसे क्या कहा जाये ?-

सारशब्द जाना नहीं, धोखे पहिरा भेख । (साखी 352)

सार शब्द जानने का विषय है मथने का नहीं कृपया ध्यान दें- परिभाषा गलत होने से प्रयोगात्मक निष्कर्ष सही नहीं आयेगा। कुछ लोग अधकचरे ज्ञान के आधार पर बिना साधन-अभ्यास किये अपनी योग्यता, बुद्धि, चातुर्य से ही मन-गढंत निर्णय दे दिया करते हैं। उनके लिये साहब ने कहा है-

 बिनु देखैं वह देश की, बात कहै सो कूर । आपुहि खारी खात है, बेचत फिरै कपूर ।। (साखी 34)

जो व्यक्ति मुक्तिधाम सतलोक को बिना देखे-परखे ही उसका वर्णन  करते हैं वे मूर्ख हैं। वे ऐसे है जैसे कोई स्वयं नमक खा रहा हो और कपूर कहकर दूसरों को बेचता फिरता हो । वह अपने व स्वयं से जुड़े सभी लोगों के साथ अन्याय कर रहा है ।

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट