पार्ट 4 प्रकरण 11 साखी 8
जिन जिन संमल न कियो, अस पुर पाटन पाय । झालि परे दिन आथये, संमल कियो न जाय। 8 ।
शब्दार्थ:- संबल= सत्य साधन अभ्यास, भजन, संबल आत्म अध्ययन । अस - ऐसा । पुर = ग्राम, मानव-शरीर। पाटन = शहर, नगर बाजार सत्संग, | झालि = अंधकार, बृद्धावस्था । आथये = अस्त होना, समाप्त होना, जीवन का अंत समय ।
भावार्थ:- ऐसा सर्व योनिश्रेष्ठ मानवशरीर प्राप्त कर जिन्होंने सत्संग व सद्भक्ति नहीं की, वे बृद्धावस्था के समय कुछ भी नहीं कर पायेंगे।
व्याख्या:- लोग कहते हैं कि अभी तो बहुत समय पड़ा है भक्ति तो बुढ़ापे में की जाती है। | वे लोग यह नहीं समझते कि शरीर की उम्र जब ढलने की स्थिति में होती है तो उन्हें अनेक प्रकार के असहनीय कष्टों का सामना करना पड़ता है। अथवा मृत्यु एक दम भी आ सकती है, तो ऐसे समय में भक्ति कहाँ से हो सकती है? वैसे तो भक्ति करने की कोई उम्र नहीं होती वह तो कभी भी कहीं भी हो सकती है।
सद्गुरु कहते हैं कि यह मानव शरीर रूपी गाँव सत्संग का बाजार है, इसी में आध्यात्मिक संबल अर्जित किया जा सकता है। जब सम्पूर्ण इन्द्रियाँ सिथिल होने को होंगी जमीन पर पैर रखने पर डगमगायेंगे, बुद्धि में भी दृढ़ता नहीं रहेगी और मृत्यु निकट होगी, तब कोई भी कार्य या भक्ति होना सम्भव नहीं है। कृपया ध्यान दें ।
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