पार्ट 4 प्रकरण 11 साखी 9
यहाँ ई सम्मल करि ले, आगे बिषई बाट । स्वर्ग बिसाहन सब चले, जहाँ बनिया ना हाट ।।9।।
शब्दार्थ:- यहाँई = नर जन्म में आध्यात्म पूँजी । आगे = अगली , अन्य खानियाँ, पशुपक्षी, कीट, वृक्ष, । विषई = केवल विषय भोग युक्त । बिसाहन = व्यापार, खरीददारी। बनियां = सत्संग, सद्गुरु । हाट = सत्संग, बाजार ।
भावार्थ:- इस मानव जन्म में शरीर की उम्र रहते ही अपना साधन अभ्यास कर सत्य प्राप्त कर लो, अन्यथा आगे का मार्ग तो केवल विषय भोग का है। जैसे कि जगत के लोग पुण्यादि शुभ कर्म कर स्वर्ग जाने का सौदा करने चले हैं जहाँ न वणिक (बनियां) न बाजार अर्थात न सद्गुरु न सत्संग है।
ब्याख्या:- मानव जीवन में ही संतसंग कर अभ्यास के द्वारा चेतन स्वरूप को जानकर उसमें स्थिति की जा सकती है। इसके बाद तो अन्य तीनों खानियों में तो केवल विषयभोग के सिवा कुछ नहीं कर सकते। इसलिये -
बंदे करिले आपु निबेरा ।
आयु जियत लखु आप ठौर करु, मुये कहाँ घर तेरा। यह अवसर नहि चेतहू प्राणी, अंत कोई नहिं तेरा (शब्द 80)
लेकिन लोग तो पौराणिक कल्पनाओं के आधार पर सदकर्म आदि करके स्वर्ग की आशा कर इन ठग गुरुओं के व्यापार में पड़कर एक धारणा किये बैठे हैं कि स्वर्ग में जाकर भगवान मिलेंगे तब कल्याण होगा। तो सद्गुरु साहब कहते है कि न वहाँ बनियां है न , कोई हाट बाजार अर्थात न कहीं स्वर्ग है न ही भगवान।
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