पार्ट 4 प्रकरण 11 साखी 6

शब्दै मारा गिर परा शब्दै छोड़ा राज । जिन जिन शब्द विवेकिया, तिनका सरिगौ काज ||6||

शब्दार्थ:- विवेकिया = बिबेक करना | गिर परा = पतित हुआ। सरिंगौ = बन गया, सुधरा । काज = कार्य । 

भावार्थ:- भ्रामक शब्द प्रभाव से लोग घृणित कार्य कर पतित भी हुये हैं, तथा वैराग्य पूर्ण शब्द की चोट से कई राजाओं ने राज्य भी छोड़ दिया। अर्थात जिन्होंने बिवेक-बिचार किया, उनका ही कार्य सफल हो पाया है।

ब्याख्या:-  वर्णात्मक शब्द जो वर्तमान में भाषा वाणी में' प्रयुक्त होते हैं उनमें भी बड़ा आकर्षण होता हैं। सत्य की लालसा में, इन बंचक गुरुओं के द्वारा दिये गये भ्रामक शब्दों में फंसकर लोग सत्य प्राप्त तो कर ही नहीं पाते बल्कि अपना अमूल्य मानव जीवन खो कर अन्यान गर्भ योनियों में' बार-बार पतित होकर भटकते रहते हैं। अथवा योगादि क्रियाओ के ध्वन्यात्मक नाद शब्दों में' भी बड़ा आकर्षक, मोहक फँसाव है जिसमें ज्योति दर्शन को लोग ईश्वर ब्रह्म मानकर स्वयं का जीवन बर्बाद करते ही है बरन् कई लोगो का भी जीवन बर्बाद कर देते हैं। 

बिबि अच्छर ले जुगुति बनाई | बिबि अच्छर का कीन्ह बंधाना, अनहद शब्द जोति परवाना || 

अच्छरपढ़ि गुनिराह चलाई, सनक सनंदन के मनभाई। वेद कितेब कीन्ह विस्तारा, फैल गयल मन अगम अपारा। (रमैनी-5)

यह शब्द जाल मन निरंजन का बहुत बड़ा चमत्कार युक्त विस्तार है। इसमें अनहदनाद व ज्योतिदर्शन को तो. बडे-बडे ब्रह्म , विष्णु, शिव सनकादियों ने सत्य का प्रमाण ही मान लिया है। यहाँ तक कि कई लोग तो सून्य ध्वनि, सन्नाहट, भन्नाहट को ही सार शब्द मान कर लगे रहते हैं

सुन्नहिं बाँचा सुन्नहिं गयऊ, हाथा छोडि वे हाथा भयऊ। (रमै 51)

 शब्द में वह ताकत है कि वह राग में भी फंसा देता हे अथवा वैरागी भी बना देता है। बिबेक सर्वत्र आवश्यक है, यहाँ तक कि सारशब्द भी विवेक परक है।

 शब्द शब्द सब कोई कहै, वह तो शब्द विदेह | जिभ्या पर आवै नहीं, निरखि परखि करि लेह ||  (साखी-35)

इसलिये सद्‌गुरु ने विवेक पर बड़ा जोर दिया है, उनकी कोई भी बात साधारण नहीं है, प्रत्येक वाणी स्वयं में एक-एक सूत्र है जो किसी भी तरह काटी नहीं जा सकती। उनकी बात को सतप्रतिशत स्वीकारने में ही भलाई है। अन्यथा-

मन की बात है लहरि विकारा, ते नहिं सूझे वार न पारा | (रमैनी -201)

तन मन भजि रहु मोरे भक्ता, सत्य कबीर सत्य है बक्ता ।(रमैनी-14)

सर्व भूत संसार निवासी, आपुहि खसम आपसुखवासी | (रमैनी - 14)

साहब कहते हैं कि भक्तो! तन व मन को छोड़कर देखो तो सत्य आत्म तत्व निजस्वरूप प्राप्त होकर हमारा वक्तव्य सत्य‌निष्कर्ष निकलेगा। यह प्रयोग जिसने भी किया वहीं समझ पायेगा क्योंकि यह मन, स्थूल शरीरस्थ किये शुभाशुभ कर्मफल को धारण कर अनेक योनियों में जीव को भटकाता है। स्थूल व सूक्ष्म (मन) शरीर ‌खतरनाक हैं, आगे सरलता है तत्पश्चात मूलस्वरुप में शांति व परम सुख है।

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट