पार्ट 4 प्रकरण 11 साखी 7

शब्द हमारा आदिका, पल पल करहू याद । अंत फलेगी मांहली, ऊपर को सब बाद ॥7 ॥

 शब्दार्थ:- आदिका - सृष्टि के आरम्भ का | पल-पल = प्रतिपल | महिली= अंदर की। बाद = व्यर्थ, बेकार ।

भावार्थ:- हमारा शब्द सृष्टि के आरम्भ का है, इसे पल प्रति पल याद‌ करना है। तब तुम्हारे अंदर के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान फल उदय होगा, और यह ऊपर का स्थूल शरीर आवरण तुम्हे व्यर्थ लगेगा ।

व्याख्या:-  सदगुरु कबीर साहब बार-बार उस एक शब्द का संकेत कर हमें स्वरूपज्ञान की जोर खींचने का प्रयास करते हुये जीवन पर्यन्त जीव मानव के कल्याणार्थ संघर्ष करते ही रहे हैं। किन्तु हममें से उन्हे समझने वाले बहुत कम लोग ही रहे हैं, यह हमारा दुर्भाग्य ही रहा है।

बोली हमारी पुरब की, हमहिं लखे न कोय | हमको तो सोई लखै, जो धुर पूरब का होय ।(साखी 194)

लोग साधारण में नहीं समझे तो उन्होंने अनेक प्रकार से व्यंगात्मक बोली तथा उलटबांसियो के द्वारा समझाने का प्रयास किया है। आप सोच सकते हैं कि कबीर ने क्यों ऐसा प्रयास किया, उन्हें इससे क्या लाभ है ?

| उत्तर है-

अपनी जाँघ उघारि के, अपनी कही न जाय । की चित जानै आपनो, को मेरो जन गाय ।। (साखी रमैनी 74)

क्योंकि जो शक्ति कबीर साहब में है वही सभी जीवों में है | 

हौं सबहिन में हौं न हौं मोहि, विलग विलग विलगाई हो । ओढ़न मोरा एक पिछोरा, लोग बोले इकताई हो।

एक निरंतर अंतर नाहीं, ज्यों शशिघट जल झांई हो। एक समान कोइ समुझत नाहीं, जाते जरा मरण भ्रम जाई हो ।(कहरा-10)

इसलिये उन्होंने कहा कि - मूल गहे ते काम है, तें मत भुर्म भुलाव । मन सायर मनसा लहरि वहे कतहूँ मत जाव। (साखी-90)

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